हम सब देख रहे हैं कि मौजूदा समय में देश को भयंकर आर्थिक असंतुलन ने अपनी गिरफ्त में ले रखा है । सत्ताधारियों की मनमर्जी ही उनकी मर्यादा है । सत्ता अधिक से अधिक धन कमाने का एक जरिया बन गया है । आमआदमी की कहीं कोई चिंता नहीं दिखाई दे रही है। और न ही आम आदमी के जीवन का कोई मूल्य रह गया है। भ्रष्ट नेता को जनता के बारे में सोचने की फ़िक्र कहाँ ? -यह लोक तंत्र का भयंकर असंतुलन हैं । और दुरुपयोग भी । इससे लोगों में लोक तंत्र के प्रति एक शंका उभरती है ।
ईमानदार आदमी को अपना उद्देश्य निरर्थक लगता है .
ईमानदार आदमी असुरक्षित है .क्योंकि सरकार ताकतवर भ्रष्टों का एक समूह बन बन गया है ।
समाज की वर्तमान जीवन शैली में कोई नहीं सोच रहा है देश में सिर्फ अपने आर्थिक हितों के बारे सोचने की एक लाइन बन गयी है सामाजिक हित दरकिनार हो गए हैं । मानवीय हित एक किनारे कर दिए गए हैं ।
एक नीति बन गई है कि कुछ भी करो किसी को भी मारो लेकिन रुपया बनाओ । समय रुपयों का है ।
आज आम आदमी प्रदूषित जिंदगी जीने को विवश है ।वह अपनेऔर अपनी आने वाली पीढ़ी के वजूद के लिए संघर्ष कर रहा है ।आम आदमी व्यवस्था बदलने की सोचता है । लेकिन हर बार दुर्भाग्य से सिर्फ सत्ता बदलती है । कभी चील सत्ता पर होती है तो कभी कौए ।
मंगलवार, 24 मई 2011
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