वारिश में दिन कमरे में ही बीता। कुछ देर रामगंगा नदी देखने गया .अपने पूरे उफान पर थी । देख कर सर चकरा रहा था । लौट कर अपने कमरे में बैठ गया
यह हरियाली,मौसम का यह रूप सहेज कर रखने लायक है
ऐसी बारिश समय समय पर होती रहे तो पहाड़ों में गर्मियों में पीने के पानी की परेशानी नहीं होगी और वातावरण भी स्वच्छ रहेगा ।
हमें इसके लिए अधिक से अधिक बांज ,उतीस ,देवदार बुरांश कंफल के पेड़ लगाने चाहिये।
शनिवार, 31 जुलाई 2010
बुधवार, 21 जुलाई 2010
शिक्षा का गिरता स्तर
पिछली पोस्टें देख रहा था तो कैलाश देवतल्ला भाई की टिप्पणी पर नजर पड़ी - भाई इस समय तो पिछले तीन दिनों से गावं वारिश में नहा रहा है । बहुत मजेदार वारिश हो रही है ।
गावं कोई भी हो इस समय बहुत खराब दौर से गुजर रहे हैं । हर गावं पलायन का दंश झेल रहा है । कई जगह तो गावं का अस्तित्व ही खतरे में है ।
बेरोजगारी के साथ-साथ शिक्षा का गिरता स्तर भी इसके लिए जिम्मेदार है । सरकारी स्कूलों में किताबें निःशुल्क मिलती हैं दोपहर का खाना निःशुल्क मिलता है फिर भी इन स्कूलों में कोई अपने बच्चों को नहीं भेजना चाहता है । खुद इन्हीं शिक्षकों के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ने जाते हैं ।सरकारी स्कूलों के अध्यापकों का वेतन भी निजी स्कूलों के अध्यापकों के वेतन का दस गुना तक ज्यादा है इसके अलावा सरकारी अध्यापकों को दुनियां भर की ट्रेनिंग दी जाती हैं । । लेकिन निजी स्कूलों मे बिना किसी विशेष ट्रेनिंग के भी बेहतर काम दिखाई देता है । सरकार भी बच्चों के साथ खिलवाड़ में पीछे नहीं है । हर वर्ष किताबें बदल जाती हैं । और छात्रों तक किताबें पहुचने में भी बहुत बिलम्ब होता है ।आखिर यह सब क्यों ? बच्चों के साथ यह खिलवाड़ क्यों ? शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है । यह सब सरकारी नियंत्रण से हटाना होगा।
गावं कोई भी हो इस समय बहुत खराब दौर से गुजर रहे हैं । हर गावं पलायन का दंश झेल रहा है । कई जगह तो गावं का अस्तित्व ही खतरे में है ।
बेरोजगारी के साथ-साथ शिक्षा का गिरता स्तर भी इसके लिए जिम्मेदार है । सरकारी स्कूलों में किताबें निःशुल्क मिलती हैं दोपहर का खाना निःशुल्क मिलता है फिर भी इन स्कूलों में कोई अपने बच्चों को नहीं भेजना चाहता है । खुद इन्हीं शिक्षकों के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ने जाते हैं ।सरकारी स्कूलों के अध्यापकों का वेतन भी निजी स्कूलों के अध्यापकों के वेतन का दस गुना तक ज्यादा है इसके अलावा सरकारी अध्यापकों को दुनियां भर की ट्रेनिंग दी जाती हैं । । लेकिन निजी स्कूलों मे बिना किसी विशेष ट्रेनिंग के भी बेहतर काम दिखाई देता है । सरकार भी बच्चों के साथ खिलवाड़ में पीछे नहीं है । हर वर्ष किताबें बदल जाती हैं । और छात्रों तक किताबें पहुचने में भी बहुत बिलम्ब होता है ।आखिर यह सब क्यों ? बच्चों के साथ यह खिलवाड़ क्यों ? शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है । यह सब सरकारी नियंत्रण से हटाना होगा।
शनिवार, 17 जुलाई 2010
हरियाला आप सभी को मंगलमय हो .
मंगलवार, 13 जुलाई 2010
अपनी कहानी
सुबह से लेकर दिन ढलने तक की दिनचर्या एक कहानी बन चुकी होती है । अपनी कहानी । जिसे देख भी सकते हैं ,सुन भी सकते हैं दूसरों को सुना भी सकते हैं , पढ़ भी सकते हैं .विश्लेषण भी कर सकते हैं । पर उस कहानी को सम्पादित कर उसमें कोई बदलाव नहीं कर सकते हैं । उस कहानी कोई री -टेक नहीं है। किसी को कुछ कह दिया तो कह दिया । रोटी खाई तो खाई । नहीं खाई तो नहीं खाई । हारे तो हारे ,जीते तो जीते । एक अंश मात्र भी बदलाव की संभावना नहीं ।
अपनी कहानी का एक पात्र हूँ । और एक रस्सी की तरह बहुत सारी चीजों को अपने इर्द-गिर्द लपेटते हुए कई पात्रों को अपने साथ जोड़ते हुए
सब लोगों के बीच खड़ा हूँ या साथ चल रहा हूँ ।
हर रोज अपनी कहानी खुद ही पढ़नी होती है । बिलकुल अकेले ।
रोज की तरह सुबह उठा , पत्नी चाय बनाकर ले आयी । बाहर सुबह की ठंडी बयार में बैठ कर चाय पी । और फिर अपने रोजमर्रा के कामों में जुट गया । एक -एक पल एक कहानी को रचते हुए ।
चारों ओर की सुखद हरियाली ,बादलों से भरा नीला आकाश । और मैं अपने सपनों को तराशते हुए आगे बढ़ते हुए आज की कहानी लिखने बैठा हूँ ।- काश! मौसम का यह रूप हमेशा साथ रहता .
रात स्वप्न अपनी कहानी लिखेंगे ।
कभी -कभी स्वप्न भी बहुत भयानक कहानी रच डालते हैं । बावजूद इसके स्वप्नों की कहानी भी होती बड़ी दिलचस्प है। और हम बहुत कुछ स्वप्नों की कथा में भी छुपाते हैं । खुद अपनी पत्नी से भी । जो कि हमारी कथा की सबसे पहली पात्र है .
अपनी कहानी का एक पात्र हूँ । और एक रस्सी की तरह बहुत सारी चीजों को अपने इर्द-गिर्द लपेटते हुए कई पात्रों को अपने साथ जोड़ते हुए
सब लोगों के बीच खड़ा हूँ या साथ चल रहा हूँ ।
हर रोज अपनी कहानी खुद ही पढ़नी होती है । बिलकुल अकेले ।
रोज की तरह सुबह उठा , पत्नी चाय बनाकर ले आयी । बाहर सुबह की ठंडी बयार में बैठ कर चाय पी । और फिर अपने रोजमर्रा के कामों में जुट गया । एक -एक पल एक कहानी को रचते हुए ।
चारों ओर की सुखद हरियाली ,बादलों से भरा नीला आकाश । और मैं अपने सपनों को तराशते हुए आगे बढ़ते हुए आज की कहानी लिखने बैठा हूँ ।- काश! मौसम का यह रूप हमेशा साथ रहता .
रात स्वप्न अपनी कहानी लिखेंगे ।
कभी -कभी स्वप्न भी बहुत भयानक कहानी रच डालते हैं । बावजूद इसके स्वप्नों की कहानी भी होती बड़ी दिलचस्प है। और हम बहुत कुछ स्वप्नों की कथा में भी छुपाते हैं । खुद अपनी पत्नी से भी । जो कि हमारी कथा की सबसे पहली पात्र है .
शनिवार, 10 जुलाई 2010
अतीत का केनवास
शनिवार । दिन बहुत गर्म था ।
रूटीन के काम निबटाये . कुछ पुराने कागज पत्र देखे । कुछ बेकार -से कागज जलाये ।
लगा की यादों को जला रहा हूँ । लेकिन यादें हैं कि और ताजा होती जाती हैं
फिर सोचा कि यादों को इस तरह नहीं जलाना चाहिए । उन्हें सहेज लेना ही बेहतर होगा .चाहे मन के किसी कोने में । कमरे की दीवारों में यादों के लिए भी जगह होनी चाहिए ।
कभी- कभी अंतर्यात्रा के समय मन की यादों की गेलरी से होते हुए जाना काफी सुकून भरा लगता है । उस गेलरी में एक विराट केनवास है ।जिसे देखते हुए निकलना बहुत आश्चर्य भरा लगता है । यकीन नहीं होता है कि इस केनवास में चित्रित चित्र स्वयं की जिंदगी के हिस्सा थे । अच्छे या बुरे - सुखद या दुखद , यह बात अलग है ।
अंतर्यात्रा आत्म सुधार के लिए का एक अवसर भी है । आत्म समालोचना भी है। कि हम कहाँ थे और कहाँ हैं ।
रूटीन के काम निबटाये . कुछ पुराने कागज पत्र देखे । कुछ बेकार -से कागज जलाये ।
लगा की यादों को जला रहा हूँ । लेकिन यादें हैं कि और ताजा होती जाती हैं
फिर सोचा कि यादों को इस तरह नहीं जलाना चाहिए । उन्हें सहेज लेना ही बेहतर होगा .चाहे मन के किसी कोने में । कमरे की दीवारों में यादों के लिए भी जगह होनी चाहिए ।
कभी- कभी अंतर्यात्रा के समय मन की यादों की गेलरी से होते हुए जाना काफी सुकून भरा लगता है । उस गेलरी में एक विराट केनवास है ।जिसे देखते हुए निकलना बहुत आश्चर्य भरा लगता है । यकीन नहीं होता है कि इस केनवास में चित्रित चित्र स्वयं की जिंदगी के हिस्सा थे । अच्छे या बुरे - सुखद या दुखद , यह बात अलग है ।
अंतर्यात्रा आत्म सुधार के लिए का एक अवसर भी है । आत्म समालोचना भी है। कि हम कहाँ थे और कहाँ हैं ।
मंगलवार, 6 जुलाई 2010

दो दिनों से लगातार बारिश से धरती नहा रही है । और निखरती जा रही है । हरियाली का यह रूप सम्मोहक है । मन को अनूठी शांति मिलती है .पहाड़ों की घाटी हो या शिखर या आकाश । यह बदलाव हमारे मन के भीतर नयी ऊर्जा और ताजगी देता है । नदी- नाले, गाड़-गधेरे सब पानी से भर गए हैं , अभी कुछ दिनों पहले की पानी की त्राहि -त्राहि मची थी .और आज तो लगता ही नहीं कि पांच दिन पहेले इतना भयानक सूखा पड़ा था ।
सुबह अल्मोड़ा जाने की तयारी की थी लेकिन बारिश को देखते हुए फिर कार्यक्रम बदल दिया ।
कमरे में बैठ कर पुराने कागज छांटे कमरे की सेटिंग बदली कुछ रुका हुआ काम किया और मौसम का पूरा आनंद लिया । इत्मीनान से बारिश में भीगा ।
बारिश को अभी भी चैन नहीं । लेकिन जमीन को अभी लगभग चार दिन-रात बारिश चाहिए ।
शुक्रवार, 2 जुलाई 2010
आदमी कितना असहाय है

दिन भर कई काम किये । कभी इधर तो कभी उधर । बारिश की इंतजार में बीता दिन । मौसम अपने समय से काम न करे तो एक भयंकर असंतुलन पैदा हो जाता है । लोग परेशान होने लगते हैं । ईश्वर पर से भरोसा उठ भी जाता है और ईश्वर पर भरोसा करने के आलावा कोई रास्ता भी नहीं दीखता । आदमी कितना असहाय है इस वैज्ञानिक युग में । आज जबकि विज्ञानं ईश्वर की हर रचना को चुनौती दे रहा है ।
टी वी पर बाजार में बिक रहे नकली मिलावटी सामान/फलों के बारे में देख रहा था । यह जहर पूरे समाज को कमजोर /बीमार कर देगा .हमें घरेलू जरुरत की चीजें सीधे किसानों से खरीदने चाहिए । या बाजार सेकच्चा माल खरीद कर घर में तैयार करनी चाहिए ,
गुरुवार, 1 जुलाई 2010
महंगाई
महंगाई भले ही अरबपति मुख्यमंत्रियों /करोडपति मंत्रियों /उद्योगपतियों /नौकरशाहों /बड़े व्यापारियों के लिए कोई मायने नहीं रखती हो लेकिन बेरोजगार/छोटे किसान /गरीब और मजदूर के सामने तो संकट खडा कर ही देती है । महंगाई तो बढ़ी पर मजदूरी या किसानों के उत्पाद का मूल्य वहीँ का वहीँ रहा । इस महंगाई से तो एक भयंकर सामाजिक असंतुलन पैदा हो गया है .
दूसरी सबसे बड़ी समस्या किसानों के लिए पानी की दिखाई दे रही है । जल स्तर कम होने से सिंचाई प्रभावित हो रही है ।सरकार के पास प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के अलावा प्राकृतिक संसाधनों के विकास की कोई नीति नहीं दिखाई दे रही है । पहाड़ों पर सड़कें तो बनाई जा रही हैं लेकिन सडकों के निर्माण में इन्जिनिरियंग का काम कोई बेहतर नहीं दिखाई दे रहा है । यहाँ की इंजीनियरिंग का कार्य अदूरदर्शी है । प्राकृतिक स्थितियों से इनका कोई विशेष लेनादेना नहीं दिखाई देता है । इन्हें पैसा और पहाड़ दिखाई देता है अन्धान्धुन्ध तरीके से पहाड़ खोदे जा रहे हैं ।
दूसरी सबसे बड़ी समस्या किसानों के लिए पानी की दिखाई दे रही है । जल स्तर कम होने से सिंचाई प्रभावित हो रही है ।सरकार के पास प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के अलावा प्राकृतिक संसाधनों के विकास की कोई नीति नहीं दिखाई दे रही है । पहाड़ों पर सड़कें तो बनाई जा रही हैं लेकिन सडकों के निर्माण में इन्जिनिरियंग का काम कोई बेहतर नहीं दिखाई दे रहा है । यहाँ की इंजीनियरिंग का कार्य अदूरदर्शी है । प्राकृतिक स्थितियों से इनका कोई विशेष लेनादेना नहीं दिखाई देता है । इन्हें पैसा और पहाड़ दिखाई देता है अन्धान्धुन्ध तरीके से पहाड़ खोदे जा रहे हैं ।
कैसी थी सुबह
देखा ही नहीं कि सुबह कैसी थी
यह भी याद नहीं कि सबह के साथ धूप आई या नहीं । खेतों में किसान भरे पड़े थे । सब आपाधापी में थे । देख रहा था कि औरते खेतों से कितना प्यार करती हैं ।
सुबह एक चक्कर गावं गया माई थान दिया जलाया
दिन कंप्यूटर पर बीता । सीधा -साधा नामालूम- सा
गावं में आम आदमी महंगाई के बोझ के नीचे खो -सा गया है । महंगाई के साथ ही उसकी मजदूरी को भी बढ़ाया जाना चाहिए । करोड़ पति मंत्री /नेताओं /उद्योगपतियों और नौकर शाहों के लिए चीजों का महंगा होना कोई मायने नहीं रखता है.लेकिन गरीब के लिए तो महंगाई होना कुँए में धकेले जाने के समान है
यह भी याद नहीं कि सबह के साथ धूप आई या नहीं । खेतों में किसान भरे पड़े थे । सब आपाधापी में थे । देख रहा था कि औरते खेतों से कितना प्यार करती हैं ।
सुबह एक चक्कर गावं गया माई थान दिया जलाया
दिन कंप्यूटर पर बीता । सीधा -साधा नामालूम- सा
गावं में आम आदमी महंगाई के बोझ के नीचे खो -सा गया है । महंगाई के साथ ही उसकी मजदूरी को भी बढ़ाया जाना चाहिए । करोड़ पति मंत्री /नेताओं /उद्योगपतियों और नौकर शाहों के लिए चीजों का महंगा होना कोई मायने नहीं रखता है.लेकिन गरीब के लिए तो महंगाई होना कुँए में धकेले जाने के समान है
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