शनिवार, 3 अप्रैल 2010

कहानियां तरह-तरह की

हर रोज अपनी बात कहनी होती है . या कहूँ कि पल-पल को जोड़ कर एक कहनी बनानी होती है .जो बहुत रोचक हो । कहानी सिर्फ अपनी ही लगाने से नहीं बनती है । उसमें दूसरों को भी जोड़ना होता है या घसीटना होता है । मैं जिससे मिला और जो मुझसे मिला उसे भी । किसी फूल के पास जाकर कुछ पल उसके पास बैठना ,उसकी सुगंध में शामिल होना और उससे चुपचाप मन ही मन अपनी बात कहना भी प्रकृति के साथ हमारे व्यवहार का एक हिस्सा है । जो हमारे दिन को सुखद बनाता है । हम कुछ देर उसके रंग और गंध से सम्मोहित हो जाते हैं .अपने तनावों से दूर हो जाते हैं । किसी को फूल भेंट करना हमें सुकून पहुंचाता है । एक चिड़िया का अपने चूजे के साथ बतियाना हमें ख़ुशी देता है । जबकि हम उनकी भाषा नहीं जानते हैं।
प्रकृति में चारों ओर हमारे मित्र फैले हुए हैं । कमी है तो उनके साथ दोस्ताना संवाद की । यही चीजें हमारी कहानी के जीवंत और रोचक पात्र हो सकते हैं । इनके और हमारे बीच के संवाद दूसरों के लिए महत्वपूर्ण हो सकते है । प्रकृति के साथ बात करती एक कहानी इस पूरी धरती को ख़ुशी दे सकती है । ख़ुशी किसी उपदेश में नहीं मिलती है किसी के कहने से नहीं मिलती । प्रकृति के साथ एक मधुर संवाद कुछ पल हमें अपने आप से संवाद की ओर ले जाता है जहां हमें किसी ख़ुशी की तलाश नहीं रह जाती । और बाहर निकलते ही हम फिर ख़ुशी तलाशते हैं ।अपने दिन में टुकड़ा-टुकड़ा घटनाएँ जोड़ कर एक कहानी बनाते हैं ।ख़ुशी की कहानी । दुःख की कहानी ।सच/झूठ और भी तमाम तरह की कहानियां ।

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