शनिवार, 24 अक्टूबर 2009

कलम मैं ताकत

दिन में एक चक्कर गैरखेत गया हिमाच्छादित पहाडियों ने मन मोह लिया । आज लगभग छः माह बाद दो कवितायें लिखी । हो सकता है की अभी सोते सोते एक कविता और लिख डालूं । काफ़ी समय से लग रहा था की मैं कविताओं की दुनियां से रिटायर हो गया हूँ । वैसे भी हर गंभीर और मौलिक विधा लगभग रिटायर -सी होती जा रही है । कोई कह रहा है कि कविता मर रही कोई कह कर चला जा रहा है कि कहानी ,उपन्यास,या निबंध मर रहा है । दरअसल ये सब हारे/ ऊबे/चुके हुए लोग हैंजिनके पास नया कहने को कुछ नहीं है जो आम जन को उकेरता हो। उनका मानना है कि कलम बेअसर हो चुकी है। उन्हौंने लिखना बंद किया तो घोषणा कर डाली कि यह सब तो मर रहा है । जो अपनी दूकान बंद कर जुआ घर मैं बैठे हैं। या नशे मैं धुत्त हैं ।या समाज के बारे मैं सोचना बंद कर दिया है। उन्होंने लिखना बंद किया तो पढ़ना भी बंद किया । लेकिन सौभाग्य से यह सब फल-फूल रहा है। लोग लिख रहे हैं । और समाज की चेतना को झकझोर भी रहे हैं । उनकी कलम मैं ताकत है।

गुरुवार, 22 अक्टूबर 2009

शिक्षा में गावं और गरीब

इस बीच लगातार व्यस्तता के कारण ब्लॉग पर नहीं बैठ पाया । कई गावों मैं घूमा कई लोगों से मिला गावों और पहाड़ को बिल्कुल करीब से देखा । मन को बाँध लेने वाले पानी के बहते गधेरे नदियाँ और हरियाली । लेकिन उतनी ही चिंताजनक अशिक्षा और गरीबी । शिक्षा, विशेष कर उच्च शिक्षा में तो गावं के लिए कोई जगह नहीं है । प्रतिभाओं के लिए भी नहीं , यदि जगह है तो धनी शहरियों के लिए । माननीय कपिल सिब्बल जी की शिक्षा नीति में तो गरीब ,गावं के लिए तो कोई जगह नहीं दिखाई दे रही है । वहाँ एक वर्ग विशेष है जिसके लिए गावं और गरीब का गला घोंटा जा रहा है । एक व्यापक वर्ग को वेहतर उच्च शिक्षा से वंचित रहना होगा माननीय कपिल सिब्बल जी की शिक्षा नीति से समाज के एक बड़े वर्ग के युवाओं में अपने भविष्य के प्रति घोर निराशा उत्पन्न होगी । जो कि समाज के लिए कोई अच्छा संकेत नहीं है ।

बुधवार, 14 अक्टूबर 2009

ठण्ड एकदम बढ़ गई । मौसम में यह परिवर्तन बहुत सुखद लगा । परसों मोहना गया था । मोबाइल से कुछ सांझ के चित्र खींचे लेकिन अफसोस कि ढलती सांझ को शब्दों में नहीं ढाल पाया । और मुस्कराती हुई साँझ पलटकर चली गई । और इसी के साथ प्रकृति का परिधान भी बदल गया । और इससे पहले कि अंधेरे का परदा कायनात को ढक ले मैं और उमा मासी को लौट आए ।

शनिवार, 10 अक्टूबर 2009

विश्व शान्ति का स्वरुप क्या है ? मानक क्या हैं ?

आजकल शाम होते-होते बुरी तरह थक जा रहा हूँ । न लिखने की फुर्सत न पढ़ने की । उमा का तो और भी बुरा हाल हो जाता है । सुबह ४ बजे से काम पर शुरू हो जाती है और रात बिस्तर पर जाने तक लगातार काम । इसी आपाधापी के चलते आजकल वह कमजोर भी हो गई है ।
कल समाचार पढा कि बराक ओबामा को नोबेल पुरूस्कार मिला है । लगा कि नोबेल समिति ने इस पुरुस्कार की घोषणा जल्द बाजी में कर दी है । ओबामा महोदय की कार्य शैली को कम-से-कम तीन -चार साल देख लेना चाहिए था। पुरूस्कार की व ओबामा महोदय जी की भी महत्ता घटी है। इसे कम-से-कम गौरवशाली उपलब्धि तो नहीं कहा जा सकता है। नोबेल पुरूस्कार की गिरती साख को देखते हुए इस पुरुस्कार को या तो बंद कर देना चाहिए या इसी के समकक्ष एक नए पुरूस्कार का सर्जन कर एक नई समिति बनानी चाहिए जिसमें कि इस विश्व स्तर के पुरूस्कार को बांटने का विवेक हो । इस पुरूस्कार के साथ एक सबसे बड़ी समस्या है कि यह पुरूस्कार अंग्रेजी से बाहर नहीं जा पा रहा है जिससे यह नोबेल समिति यह साबित कराती है के अंग्रेजी के अलावा दुनिया के किसी भी साहित्य में किसी भी विज्ञान में या अन्य विषयों में कुछ भी श्रेष्ट नहीं है , और अंग्रेजों के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति श्रेष्ट नहीं है । बराक ओबामा महोदय के विश्व शान्ति के प्रयास क्या हैं ?

बुधवार, 7 अक्टूबर 2009

बर्षा चक्र

आज बुरी तरह थक गया हूँ । या बुखार आने वाला है । लेकिन सोऊंगा तो ब्लॉग लिखकर ही । कल मैंने लिखा था कि किसान को आर्थिक सुरक्षा देनी होगी । तभी वह अपनी खेती को बढ़ाने या खेती पर अपनी निर्भरता को मजबूत करेगा । पहाडों में खेती पर तो किसान जिंदा नहीं रह सकता । यहाँ जहाँ पर खेती बर्षा पर निर्भर है वहां परम्परागत बुआई में या फसल चक्र में परिवर्तन के साथ -साथ समय चक्र में भी परिवर्तन की आवश्यकता है क्योंकि पिछले कुछ बर्षों से यह देखने में आ रहा है कि बारिश का समय एक-डेढ़ माह आगे खिसक गया है यानी जो बारिश जुलाई -अगस्त में होती थी वह बारिश सितम्बर अक्टूबर में होने लगी है। इससे फसल का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है । और हर साल सूखे की स्थिति उत्पन्न हो रही है । और किसानों में हर साल एक निराशा घर कर जाती है। मैंने कई जगह देखा है कि वहां किसान वारिश होने के बाद ही बोआई करते हैं और बर्षा चक्र के साथ चलने के कारण अच्छी फसल प्राप्त करते हैं ।

मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009

हमारे किसान

आजकल गावों में भ्रमण कार्यक्रम में व्यस्त हूँ । कल और परसों बारिश की वजह से नहीं गया । किसान हाड़ तोड़ मेहनत करता है । उसपर यदि समय पर बारिश नहीं हुई तो किसान बहुत हताश हो जाता है । उसे अपने व बच्चों का भविष्य शून्य दिखाई देता है ग्रामीण व छोटे किसानों का भविष्य तो बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है । सारी मेहनत के बाद किसान बाज़ार की ओ़र ताके तो क्या होगा ? वह खेती छोड़ मेहनत मजदूरी की तरफ़ भागेगा । किस्सान के पलायन के साथ ही एक परम्परा का भी समाप्त होने का खतरा रहता है । हर किसान के भीतर एक पीढियों पुरानी परम्परा भी होती है । किसान के पलायन के साथ ही गावं और जमीन के भी प्रभावित होने की पूरी संभावना रहती है । इसलिए किसी भी प्रकार हो किसान को आर्थिक सुरक्षा मिलनी चाहिए ।

गुरुवार, 1 अक्टूबर 2009

जीवन की रिक्तता

असोज का महीना क्या लगा कि घर के काम में उलझ कर रह गया हूँ -यह भी एक अनुभव है . दिन भर काम करने के साथ -साथ यह भी सोचना होता है कि आज ब्लॉग पर क्या लिखूं । हमारे जीवन में हर रोज कुछ न कुछ ऐसा घटित होता है कि हमें वह पल याद रहता है और हम कुछ दिन तक अपने मित्रों से उस बात का जिक्र करते हैं । वह एक सुखद या दुखद स्वप्न भी हो सकता है । या एक रिक्तता -जिसका जिक्र भी बहुत महत्व का होता है । कुछ लोग खालीपन से भागते हैं ,जबकि कुछ ऐसे भी हैं जो अपने जीवन के खाली स्थान को सुरक्षित रखना चाहते हैं । ताकि जिंदगी की भाग -दौड़ से उबने के बाद अपनी जिंदगी के खाली कमरे में आ कर कुछ पल आराम से बिताये जा सकें और इस रिक्तता से नई ऊर्जा प्राप्त की जा सके । यह रिक्तता आत्ममंथन की प्रेरणा देती है हमें चिंतन का अवसर मिलता है । और हम इत्मीनान से पीछे और आगे देख सकते हैं । अपने रास्ते तय कर सकते हैं । यह खालीपन फूलों की सुगंध से भरा होना चाहिए ।

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...