निशा शान्त अवश्य होती है पर मौन नहीं। तिमिर की कालिमा में दिनभर के सारे प्रश्न जाग उठते हैं.
उनके प्रश्न जिनकी आवाज दिन को सुनाई नहीं देती है। दिन के प्रकाश की चकाचौंध में जिनकी आवाज दब जाती है अन्याय और शोषण के कोलाहल से भयभीत जो अपनी बात नहीं कह पाते रात्रि उनके क्रंदन से सो नहीं पाती। उनके साथ बैठ कर उनकी बातें सुनती है शोषण और अन्याय की झकझोर देने वाली कहानियां उसकी चिन्ता बन जाती है।
रात्रि के आकाश में न्याय के लिए पुकारने की गूंजती आवाजों पर न्याय उसका उत्तरदायित्व होता है।
शांत हृदय से कभी रात्रि में बाहर बैठ कर अँधेरे की सुंदरता का आनंद लें।
जंगलों से आती उन सभी की मधुर आवाजों को सुनें जो दिन में नहीं बोल पाते। या दिन के कोलाहल में उनकी आवाज हम तक नहीं पहुँच पाती है उनका बोलना एक सम्मोहक संगीत है जो सर्वत्र गूंजता रहता है। रात्रि हमेशा सोने के लिए ही नहीं होती है। अँधेरे का रास्ता भोर के दिव्य प्रकाश के साथ दिन के उजाले की ओर जाता है। किसी पहाड़ी के शिखर पर बैठकर कभी शांत मन से अँधेरे के साथ इस राह के यात्री बने।