शुक्रवार, 15 नवंबर 2019

नमस्कार मित्रो,
मौसम में परिवर्तन  एक सुखद अनुभूति है। यह एक उत्सव है सभी प्राणियों के लिए , लेकिन हम इस उत्सव को जिस  दिशा की ओर ले जा रहे हैं यह चिंता का विषय है। आज के समाज में जिन्हें हम बुद्धिजीवियों की श्रेणी में रखते हैं वे सब उसी प्रकार खामोश हैं जिस प्रकार द्रौपदी के चीर हरण में सारे पांडव और कौरव राजा और सभासद मौन थे और परिणाम सभी को मालूम है न पांडव रहे न कौरव।  एक मौन ने महा विनाश को आमंत्रित किया।  प्रकृति के साथ होने वाले खिलवाड़ पर हमारा मौन इस धरती से प्राणियों का अस्तित्व ही ख़त्म कर देगा।
इस समय भी सब मौन हैं। जो बोल रहे हैं वे सिर्फ पीड़ित हैं या विदुर की तरह शक्ति हीन  हैं। 

शनिवार, 15 जून 2019

जून आधा निकल चुका है।  उत्तराखंड की खूबसूरत पहाड़ियों के  लगभग सभी  जंगल जल  चुके हैं. यह हर वर्ष  हो रहा है।  उत्तराखंड की सबसे मूल्यवान सम्पदा जड़ी बूटियां हर साल खाक हो जाती हैं। हवा में जहरीला  धुआं छा  जाता है। जल श्रोत सूखते जा रहे   हैं  मिट्टी  ऊपरी सतह आग के कारण अपनी नमी खो रही है। नए  जंगली पौंधे नहीं पनप रहे हैं जो पेड़ लगे हैं हर वर्ष लगने वाली आग के कारण अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इसका सीधा असर स्थानीय  जन जीवन पर पड़ रहा  है। 

यह एक  परंपरा सी हो गई है।  किसी को भी इसकी चिंता नहीं है न नेशनल ग्रीन  ट्रिब्यूनल को,  न केंद्र सरकार को न विश्व समुदाय को।   वन विभाग से तो उम्मीद ही नहीं।  
आखिर क्या  यह सब वनों के पूर्ण रूप से खात्मे के बाद ही बंद होगा। 

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...