रात जम कर बारिश हुई ।
बिजली भी चमकी ।
मैं दिल खोल कर बैठा था कि बिजली मेरे दिल में उतरेगी।
लेकिन मालूम नहीं किसके दिल में उतरी ?
जहां उतरी होगी वहां फूल खिल गए होंगे ।
मैं तो बस, भीगता रहा सारी रात । बिलकुल तनहा ।
सुबह देखा तो धरती चमक रही थी ।
रात बिजली हरियाली भी बिखेर गई होगी ।
उफ!
सोमवार, 18 अप्रैल 2011
मंगलवार, 12 अप्रैल 2011
सुबह से इंतज़ार कर रहा हूँ कि कब बारिश हो । लेकिन बादलों को तो जैसे बूंदें गिराने में डर लग रहा है ।
इस मौसम में बारिश चाहिए ।
गधेरे/श्रोत /नदियाँ सूखने के कगार पर हैं । फसल को बारिश का इंतज़ार है । फूलों को भी अपने रंग बिखेरने के लिए बारिश चाहिए ।
बारिश में ही तन और मन भी भीगेगा ।
भीतर कहीं एक आग भी लगेगी ।
इस मौसम में बारिश चाहिए ।
गधेरे/श्रोत /नदियाँ सूखने के कगार पर हैं । फसल को बारिश का इंतज़ार है । फूलों को भी अपने रंग बिखेरने के लिए बारिश चाहिए ।
बारिश में ही तन और मन भी भीगेगा ।
भीतर कहीं एक आग भी लगेगी ।
रविवार, 10 अप्रैल 2011
शाम होते होते इतना थक जाता हूँ कि ब्लॉग पर बैठे-बैठे नींद आने लगती है।
कभी -कभी लगता है कि लिखने के लिए कुछ नहीं बचा । लेकिन फिर दिखाई देता है कि इतना बचा है कि अभी तो शुरू भी नहीं माना जा सकता ।
इस देश में भ्रष्ट्राचार के खिलाफ सरकार को हिलाने के लिए एक ही व्यक्ति काफी है बशर्ते कि वह खुद भ्रष्ट न हो । स्वार्थी न हो ।
भ्रष्ट्राचार की हद तो काफी पीछे छूट गई है । इस कीचड़ में देश बहुत आगे निकल आया है ।
जनता के पास नेताओं का विकल्प भी होना चाहिए ।क्यों कि कुरसी मिलते ही नेता की सोच ख़त्म हो जाती है । विवेक ख़त्म हो जाता है । या भ्रष्टाचार के बल पर विवेकहीन सत्ता पर काबिज हो जाते हैं ।
कभी -कभी लगता है कि लिखने के लिए कुछ नहीं बचा । लेकिन फिर दिखाई देता है कि इतना बचा है कि अभी तो शुरू भी नहीं माना जा सकता ।
इस देश में भ्रष्ट्राचार के खिलाफ सरकार को हिलाने के लिए एक ही व्यक्ति काफी है बशर्ते कि वह खुद भ्रष्ट न हो । स्वार्थी न हो ।
भ्रष्ट्राचार की हद तो काफी पीछे छूट गई है । इस कीचड़ में देश बहुत आगे निकल आया है ।
जनता के पास नेताओं का विकल्प भी होना चाहिए ।क्यों कि कुरसी मिलते ही नेता की सोच ख़त्म हो जाती है । विवेक ख़त्म हो जाता है । या भ्रष्टाचार के बल पर विवेकहीन सत्ता पर काबिज हो जाते हैं ।
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