बुधवार, 8 दिसंबर 2010

पलायन का दंश


एक गावं सुराना रिखारी से अभी-अभी लौटा हूँ । प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर गावं । यहाँ से चारों ओर का नजारा देख सकते हैं .हिमालय श्रंखला की हिमाच्छाद्दित पहाड़ियां मन को मोह लेती हैं । तो नीचे की ओर रामगंगा घाटी आकर्षित करती है ।इतनी ऊंचाई पर बसा यह गावं प्राकृतिक रूप से धनी होने के साथ -साथ फसल उत्पादन में भी आत्म निर्भर है । यहाँ पानी भी प्रचुर मात्र में उपलब्ध है । इसे प्रयास करके आर्थिक रूप से भी आत्म निर्भर बनाया जा सकता है । लेकिन यह गावं भी रोजगार की कमी के कारण पलायान का दंश झेल रहा है । पहाड़ों में गावों में उत्साही नवयुवकों के पलायन से वृद्ध लोगों के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई है । वे लोग भी अकलेपन का दंश झेल रहे हैं ।
मैंने अभी तक देखा है कि गावों में रोजगार सृजन के लिए प्रयास किये जायं तो काफी हद तक पलायन रुक सकता है ।
नेट पर बैठ कर मेल देखी । कुछ काम निबटाये ।
सुबह दिल्ली से मामाजी जी आये थे । कुछ देर उनके साथ बैठ कर बातें की।

रविवार, 5 दिसंबर 2010

कुछ लिखना चाहिए

अचानक ठण्ड बढ़ गई है । लगता है कि शीत लहर शुरू हो गई है ।
दिन यूँ ही बीता । गावं की तरफ गया । धूप थी लेकिन ठण्ड के कारण महसूस नहीं हो रही थी ।
इस बार वारिश हुई तो सीधे बरफ गिरेगी ।
बर्फ के साथ गिरेंगी यादें ।
सुबह उमा के हाथों की पहली चाय और फिर अखबार के साथ दिन की शुरुआत की । कविताओं में खोने की सोच रहा था ,खोया ,लेकिन कविताओं में नहीं , बरफीली पहाड़ियों में । ठंडी हवाओं में । हरे भरे जंगलों में ।
लौटा तो लगा कि खाली लौट आया । एक शून्य मेरे भीतर था ।
जिसमें कहीं कोई शब्द नहीं था ,
कोई आवाज नहीं थी ,बिलकुल निः शब्द ।


लौटने के बाद मैंने और उमा ने साथ चाय पी । अच्छा लगा। शून्य में एक दस्तक ।
द्वार खोलो शब्द भीतर आना चाहते हैं ।
मुझे लगा कि आज तो कुछ लिखना ही होगा ।
सांझ ढल गई ठण्ड ने फिर आ घेरा । सारे पक्षी अपने अपने घोंसलों में लोट आए हैं । इस मोह ने एक शून्य को तोडा
और मैं फिर शब्दों के बीच आ बैठा । सोचा कि कुछ लिखना चाहिए ।

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

अंतर

ठण्ड अब बढ़ने लगी है । धूप मीठी लग रही है । और मौसम बिलकुल साफ़ है ।
आज कई दिनों के बाद लिखने बैठा हूँ ,इस लिए सोच रहा हूँ कि क्या लिखूं ? नेताओं को मुद्दे चाहिए ,चाहे वह समाज के लिए कितना ही घातक क्यों न हो .वहां विवेक का कोई महत्त्व नहीं है
और लेखक को विषय .किन्तु विवेक के साथ ।
एक सत्ता से उतरते ही भुला दिया जाता । और दूसरे को पीढियां याद करती हैं एक के सम्मान की सीमा है और दूसरे का सम्मान वैश्विक होता है । एक अथाह दौलत पाना चाहता है और अथाह दूसरा ज्ञान । एक समेटता है दूसरा बांटता है. यह समाज है ।
आदमी और आदमी के बीच सत्ता ने एक गहरी खाई खोद रक्खी है । उस खाई को पाटे यही लेखक का काम है ।

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...