बुधवार, 29 सितंबर 2010

यह दैवीय आपदा थी

आज बहुत दिन हुए अपने ब्लॉग पर बैठे । इस साल की बारिश ने बहुत तबाही मचाई । लग रहा था कि pरक्रती सब कुछ तबाह कर डालेगी । पहाड़ की हर सड़क हर १०० मीटर पर या तो टूट गई थी या ऊपर दे मलवा आने के कारण अवरुद्ध हो गई थी कई जगह तो सड़क का नामो निशान ही नहीं था । एक हफ्ता तक यातायात ठप रहा । वह तो जे सी बी/अर्थ मूवर ने ताबड़ तोड़ चौबीसों घंटे काम करके कुछ मुख्य सड़कें हलके वाहनों के लिए खोल दी .खाने की चीजें ख़त्म होने लगी .आपूर्ति बंद हो गई .हर ओर बाढ़ - भू स्खलन का खतरा मंडरा रहा था । और बारिश थी की थमनेका नाम ही नहीं ले रहे थी .इन्हें दुरुस्त होने में बरसों लगंगे हर गावं में मकानों में दरारें आई कई मकान मलवे के नीचे जमींदोज हो गए . कई लोग दब कर मर गए। ऊपर से पहाड़ धंस कर आने से एक स्कूल में मलवा दीवार तोड़कर अन्दर आने से एक दर्जन से अधिक बच्चे दब कर मर गए । कई आदमी/ औरतें उफनते नदी नालों में बह गए पहाड़ों में भयंकर तरीके से भू स्खलन हुआ .प्रशासन ने कई जगह गावं के गावं खाली करवाए । लोगों ने दहशत में रातें बिताई । लग रहा था कि हर पहाड़ दरकने वाला है ।विशाल चट्टानें खिसक कर ऊपर से नीचे तक आगई . खड़े पहाड़ों के नीचे का हर गावं जमींदोज होने के खतरे के अन्दर था .पूरा उत्तराखंड बरसों पीछे चला गया । लोगो को बचाने के सरकार के प्रयास बहुत सराहनीय थे ।

अब धूप आयी । लेकिन लोगों के आंसूं अब भी बरस रहे हैं । किसी का घर गया तो किसी का प्राणों का प्यारा ।

यह दैवीय आपदा थी । समर्थ पर भी आयी और असमर्थ पर भी ।

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