कल का अखबार देखा चौखुटिया के पास एक तेंदुआ फिर मारा गया । आश्चर्य कि तेंदुओं की मौत पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है । यह क्षेत्र वन तस्करों के लिए सुरक्षित क्षेत्र है । साथ ही वन्जारों पर भी नियंत्रण रखा जाना चाहिए । क्योंकि ये लोग छोटे जंगली जानवरों -सियार , जंगली खरगोश , वन मुर्गी ,खुबसूरत और लम्बी पूंछ वाला लुप्तप्राय जानवर जिसे कुमाउनी में अठराव कहते हैं इनका शिकार करते हैं ।
सुबह जल्दी उठकर रोज के काम निबटाये ठण्ड बहुत थी लेकिन तेज धूप भी । कल रानीखेत गया था एक मीटिंग थी । लौटते हुए शाम हो गई थी । पहाड़ों का बहुत खुबसूरत नजारा देखते हुए जाने का पूरा आनंद लिया । हर मोड़ पर खूबसूरती इंतज़ार करती लगती है । लेकिन हमें तो देखकर निकल जाना होता है । -खूबसूरती भी ,बदसूरती भी और रह जाते हैं रस्ते । जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण सुख इन रास्तों के पास ही होता है जो ये हमें देदेते हैं ।
शनिवार, 30 जनवरी 2010
मंगलवार, 26 जनवरी 2010
ठण्ड में सारस
सुबह अभी बहुत ठण्ड है। इसके बजूद भी पक्षी सुबह की ठण्ड के गीत गाने निकल आये । कल देखा कि रामगंगा नदी में कई सारसों के जोड़े तैर रहे हैं ।काफी समय बाद इन मेहमान पक्षियों को इस नदी में देख कर बहुत ख़ुशी हुई । कल दिन भर बहुत व्यस्त रहा । एक बुकिंग छोड़ने जौरासी गया था । रस्ते में एक्सीलेरेटर का तार टूट गया फिर जुगाड़ कर तार जोड़ा तब वापस मासी आया मौसम सुहावना कहूँ या डरावना कहूँ क्योंकि ऐसे मौसम को देख कर मैं तो खुश हो सकता हूँ लेकिन किसान तो परेशान हैं । उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है। इस महंगाई के दौर में अगर किसान के खेत सूख जाएँ तो किसान तो बेचारे मारे गए । एक एक मंत्री/ उद्योगपति /तस्कर/हीरो करोड़ों अरबों रुपयों का मालिक है । उन्हें क्या परवाह कि वारिश हो या न हो । किसान की कौन सोचता है - सिर्फ किसान । पांच सितारा होटलों में रहने वाले मंत्रियों का भला समाज की चिंताओं से क्या वास्ता ? जो मंत्री समाज को कैटल क्लास की संज्ञा दे उस मंत्रीऔर उस मंत्री को समर्थन देने वाली सरकार से देश की जनता क्या उम्मीद करेगी ? और दुर्भाग्य है इस देश की जनता का कि वे फिर भी मंत्री पद पर बने हुए हैं । सरकार को जनता के हितों के विरुद्ध नहीं जाना चाहिए ।
शुक्रवार, 22 जनवरी 2010
आज और कुछ नहीं
कल के अखबार में एक तेंदुए के मारे जाने की खबर फिर छपी । हे भगवान् यह क्या हो रहा है ? इस पर संसद में प्रश्न उठाया जाना चाहिए । और इनकी सुरक्षा निश्चित की जानी चाहिए । आज और कुछ नहीं ।
मंगलवार, 19 जनवरी 2010
हिंसा की पाठशाला
सुबह चिंताजनक समाचार से शुरू हुई कि कार्बेट पार्क रामनगर में एक बाघ की मौत हो गई है । पूरी दुनिया बाघ बचाने के लिए प्रयास कर रही है । और यहाँ बाघ और अन्य जानवर बेमौत मरे जा रहे हैं .यह घटना प्रशासन तंत्र की मुस्तैदी की पोल खोलती है . साथ ही सरकार की प्राणियों के हितोंकी सुरक्षा की चिंता की पोल भी खोलती है । हर दिशा से शिकारी और अंगों के व्यापारी जानवरों को मार गिराने के लिए बन्दूक ताने खड़े हैं। और सरकारें हैं कि मरने दे रही है .खूबसूरती हमेशा से ही प्राणघातक रही है। गावों में मुर्गी सुबह ब्रह्म मुहूर्त में लोगों को जगाने के लिए बांग देती है जबकि शहर में मुर्गी सुबह ब्रह्म मुहूर्त में अपने प्राणों की रक्षा के लिए चीखती हैभैंस /गाय सुबह अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए राभंती हैं और यहाँ शहर में सुबह बूचड़खाने की ओरजाते हुए अपने प्राणों की रक्षा के लिए राभंती हैं .ये बूचडखाने समाज को हिंसक बनाने की पाठशालाएं हैं . महात्मा गाँधी का अहिंसा का दर्शन अप्रासंगिक लगता है जबकि आज आवश्यकता इस बात कि है इस धरती पर एक गावं या शहर तो ऐसा हो जो मांसाहार का विरोध करता हो या शाकाहारी हो । हम यदि अहिंसा का संकल्प लें तो आतंकवाद की आधी समस्या हल हो जाएगी रह जाएगा तो सिर्फ अन्याय का अहिंसक प्रतिशोध । हमें आज नहीं तो कल अहिंसा का मार्ग चुनना ही होगा ।
शनिवार, 16 जनवरी 2010
कल ही दिल्ली से लौटा हूँ । संस्था के कार्य से गया था । मामा जी के यहाँ रुका था ।मारे कुहरे के तीन दिन धूप नहीं देखी बगैर धूप के जीवन की कल्पना भी इतनी ही ठंडी होगी . पाखी और अहा जिंदगी पत्रिकाएं खरीदी । इनमें रचनाएँ प्रकाशनार्थ भेजूंगा यहाँ की भाग दौड़ वाली जिंदगी थका देने वाली और ऊबाऊ लगती है । दौड़ते भागते वाहनों को देख कर लगता है की यहाँ लोग धैर्य और सुकून की जिंदगी जीना पसंद नहीं करते और न ही दूसरों को इस तरह जीने देना पसंद करते हैं । यहाँ धन ही सब कुछ है । उसके आगे जीवन का कोई मूल्य नहीं । आखिर इस ह्रदयहीन दौड़ा-भागी का औचित्य क्या है ? जीवन के मूल्य अनावश्यक नियम और कानून के फंदे में उलझ कर रह गए हैं ।सत्ता के पास के प्राकृतिक जीवन के दृष्टिकोण का अभाव है .और न ही नागरिकों/प्राणियों के प्राकृतिक हितों की सुरक्षा की कोई चिंता या कार्ययोजना है. जबकि प्राकृतिक नियम बेरहमी से तोड़े जा रहे हैं । यहाँ शुद्ध हवा और शुद्ध जल के लिए कोई नियम नहीं है कुछ इस भावना के साथ कि धन के आगे यह सब कोई मायने नहीं रखते.यहाँ व्यक्ति के धन और स्व केन्द्रित होने के कारण प्राकृतिक तौर पर जीवन मूल्यों का हनन हुआ है
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