ऋतु एक सुहावनी करवट ले रही है। बरसात के बाद आसमान बिल्कुल प्रदुषण रहित ,साफ़- स्वच्छ होने के कारण सूर्य की किरणें गर्म लोहे की छड़ की तरह तेज और बदन को जला देने वाली पड़ रही हैं. दिन छोटे होने लगे हैं.
उत्तराखंड के पहाड़ों के गावों में खेती का काम आरम्भ हो गया है। यानि आश्विन मास लग गया है। ग्रामीण आजकल इतने व्यस्त हैं. कि बुखार और छोटी- मोटी बीमारियों की चिकित्सा आदि के लिए चिकित्सक के पास जाने का भी समय नहीं, वो तो खेत से घर और घर से खेत आने जाने में ही ठीक हो जाता है। खाने के लिए घर आने का भी समय नहीं होता है घर का एक सदस्य खाना बनाकर उनके लिए खेतों में ले जाता है। या सुबह घर से खाना बनाकर अपने साथ ले जाते हैं। किसान होना कोई आसान काम नहीं है. हमें मात्र तैयार उपज दिखती है।
कुछ ही समय पश्चात् बाजार में नई फसल की गहत, उड़द , मडुवा , झंगोरा, बाजरा, तिल, चौलाई, धान आदि आने लगेगा । फसल के साथ -साथ पूरे वर्ष भर के लिए पशुओं के लिए घास भी जमा करनी होती है। और अगली बुआई के लिए खेत भी तैयार करने होते हैं।
रोजगार के अभाव में पहाड़ों से पलायन के कारण कृषि और पशु पालन भी प्रभावित हुआ है। बच्चे न होने के कारण कई गावों में स्कूल बंद होने की स्थिति में हैं. कई गावों में पहाड़ी शैली में बने आलीशान नक्काशीदार घर खंडहर हो चुके हैं। आधे से अधिक खेत बंजर हो चुके हैं।
जो एक बार यहाँ से रोजगार के लिए पलायन कर गया वह फिर लौट कर गावं देखना भी नहीं चाहता ,या रोजगार की आपाधापी में उसे गावं के बारे में सोचने का भी समय नहीं मिल पता हो।
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