बुधवार, 24 जून 2015

बरसात की आमद काफी सुखद रही।  हम प्राकृतिक हितों की फिक्र करें या न करें लेकिन प्रकृति को फ़िक्र है. प्रकृति तो  अपने साथ हुए अन्याय का क्रूरता के साथ जवाब भी देती है. यह अंधाधुंध तरीके से प्राकृतिक संसाधनों के खनन में लगी सरकारों व  नेताओं को ध्यान में रखना होगा।
वर्ना भयंकर प्राकृतिक आपदाओं को झलने के लिए हमें तैयार रहना होगा और इसकी जिम्मेदारी तय करनी होगी  . 

सोमवार, 1 जून 2015

jangal jal rahen hain.

नमस्कार मित्रो ,
यह बेहद चिंताजनक है कि पहाड़ों में जंगलों में हर वर्ष भयंकर रूप से आग लगाना या लगाया जाना निरंतर जारी है।  यहाँ सब निष्क्रिय हैं।  वन विभाग,ग्रामीण, ग्राम पंचायतें ,वन पंचायतें,शहरी, सरकार,  हर व्यक्ति।
यह सब हमीं लोग हैं. और जंगल हम सबके जीवन का हिस्सा है.
सभी लोग जानते हैं कि  हम प्राकृतिक संसाधनों के खात्मे की ओर  बढ़ रहे हैं. स्वच्छ हवा , स्वच्छ पानी , स्वच्छ मिट्टी।  सब सीमित होते जा रहे हैं.
हम सब इन्हें ख़त्म करने की ओर ले जा रहें हैं। कोई भी गंभीर नहीं है.
जंगलों में जंगली पशुओं का खाना ख़त्म हो रहा है. वे आवादी की ओर भाग रहे हैं. चिड़ियों का खाना पानी ख़त्म हो रहा है. बन्दर भूख से परेशान  हैं. पानी के श्रोत सूख रहे हैं. मिट्टी की नमी ख़त्म हो रही है।
इससे किसी को कोई लेना देना नहीं है.
पहाड़ी नदियों में अंधांधुंध खनन जारी है।  जो कि भावी आपदा की तैयारी है।
 प्राकृतिक हितों के प्रति सब उदासीन हैं। 

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...