रविवार, 6 सितंबर 2015

बारिश की कमी से किसानों की परेशानी साफ़ दिखने लगी है. यानि फसल तो प्रभावित होगी ही साथ ही पानी की भी किल्लत बनी रहेगी।
किसान यानि पहाड़ी  ग्रामीण  व छोटे  किसान। जो कुछ मजदूरी और कुछ खेती पर निर्भर हैं. वे परेशान दिख रहे हैं सरकार की नीतियों से कामगारों ,किसानों ,मजदूरों और नौकरशाहों के बीच एक बहुत बड़ी खाई पैदा कर दी है।  समाज में आर्थिक असंतुलन की स्थिति पैदा हो रही है. जहां नौकर शाह डेढ़  से दो तीन हजार प्रतिदिन कमा रहा है।  वहीँ बेरोजगार मात्र एक से डेढ़ सौ रुपये प्रतिदिन की दिहाड़ी पर गुजर कर रहा है. वह भी अनिश्चित होती है. महंगाई के बोझ में दबा किसान /मजदूर कर्ज लेकर आत्महत्या कर रहा है. उसके पूरे  परिवार का शोषण हो रहा है. यह असंतुलन एक सोची समझी रणनीति के तहत हो रहा है। किसानों/मजदूरों  की आय और बाजार में एक बहुत बड़ी खाई बन रही है.वस्त्र, शिक्षा,इलाज ,और बेहतर भोजन किसानों /मजदूरों के दायरे से बाहर होता जा रहा है। 
सार्वजनिक  शिक्षा की स्थिति तो चिंताजनक हालत में पहुँच चुकी है.
इस सब की ओर किसी नेता का ध्यान नहीं हैं  

सोमवार, 6 जुलाई 2015

swagat chaturmaas

नमस्कार मित्रो ,
इस बारिश ने धरती  का रंग बदल दिया है. मनोहर हरितिम छटा लौट आई है. तपिश कम हुई है, हाफंते परेशान से पक्षी खुश दिख रहे हैं.खेतों से रात में  मेढंकों के टर्राने की आवाज सुनाई देने लगी है  । सांप धरती से बाहर निकलने लगे हैं , सब्जियों की बेलों में फूल निकल आये हैं  ,चातुर्मास का महोत्सव आरम्भ हो गया है.
और सभी प्राणी बारिश में भीग कर उत्सव का आनंद ले रहे हैं.
हर तरफ एक नई  ऊर्जा का संचार दिखाई पड़ रहा है. एक-एक पौंध ,एक-एक पत्ता, एक-एक कोंपल से ख़ुशी की अभिव्यक्ति झलक रही है.
आओ इस उत्सव का आनंद लें. 

बुधवार, 24 जून 2015

बरसात की आमद काफी सुखद रही।  हम प्राकृतिक हितों की फिक्र करें या न करें लेकिन प्रकृति को फ़िक्र है. प्रकृति तो  अपने साथ हुए अन्याय का क्रूरता के साथ जवाब भी देती है. यह अंधाधुंध तरीके से प्राकृतिक संसाधनों के खनन में लगी सरकारों व  नेताओं को ध्यान में रखना होगा।
वर्ना भयंकर प्राकृतिक आपदाओं को झलने के लिए हमें तैयार रहना होगा और इसकी जिम्मेदारी तय करनी होगी  . 

सोमवार, 1 जून 2015

jangal jal rahen hain.

नमस्कार मित्रो ,
यह बेहद चिंताजनक है कि पहाड़ों में जंगलों में हर वर्ष भयंकर रूप से आग लगाना या लगाया जाना निरंतर जारी है।  यहाँ सब निष्क्रिय हैं।  वन विभाग,ग्रामीण, ग्राम पंचायतें ,वन पंचायतें,शहरी, सरकार,  हर व्यक्ति।
यह सब हमीं लोग हैं. और जंगल हम सबके जीवन का हिस्सा है.
सभी लोग जानते हैं कि  हम प्राकृतिक संसाधनों के खात्मे की ओर  बढ़ रहे हैं. स्वच्छ हवा , स्वच्छ पानी , स्वच्छ मिट्टी।  सब सीमित होते जा रहे हैं.
हम सब इन्हें ख़त्म करने की ओर ले जा रहें हैं। कोई भी गंभीर नहीं है.
जंगलों में जंगली पशुओं का खाना ख़त्म हो रहा है. वे आवादी की ओर भाग रहे हैं. चिड़ियों का खाना पानी ख़त्म हो रहा है. बन्दर भूख से परेशान  हैं. पानी के श्रोत सूख रहे हैं. मिट्टी की नमी ख़त्म हो रही है।
इससे किसी को कोई लेना देना नहीं है.
पहाड़ी नदियों में अंधांधुंध खनन जारी है।  जो कि भावी आपदा की तैयारी है।
 प्राकृतिक हितों के प्रति सब उदासीन हैं। 

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...