शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013


 एक शून्य- सा उभर आया था ,
जिसके भीतर सिर्फ मैं ही नहीं  था।
मेरे साथ थे विचार ,  जिन्होंने मुझे न सोने दिया
न जागने  दिया।


जो निरंतर स्वप्न बनते रहे।

और हर स्वप्न एक नया शून्य बुन देता।
जिस तरह सूर्य घटनाओं से भरा एक दिन बना देता है।
और चंद्रमां
 रात स्वप्नों के लिए।




  
नमस्कार मित्रो ,
आज फिर कई  दिनों बाद अपने पन्ने पर बैठा हूँ।
अनिश्चित कार्यक्रम और अनिमियत दिनचर्या कई कार्यों को भी अनिमियत कर देती है।  इस अनिमियतता के कारण  कई महत्वपूर्ण चीजें छूट जाती हैं मसलन दोस्तों से मिलना ,जरुरी काम निबटाना और जरुरी चीजों को देखना ,
अनुपस्थिति का दौर भी कई घटनाओं का साक्षी होता है ,इसका अर्थ यह नहीं कि  मैं नहीं था तो कुछ नहीं हुआ  होगा  ,अनियमित लेखन के कारण कुछ अच्छा देखा तो वह भी कहने  से रह गया और कुछ गलत होते देखा तो वह भी बताने से रह गया। यह एक किस्म से अन्याय है-लेखन के साथऔर स्वयं के साथ भी ।  या तो लिखना ही नहीं  चाहिए और यदि लिखते हो तो पूरी ईमानदारी के साथ लिखो।

प्रकृति की आवाज सुनो।
वहां धीरे- धीरे सब कुछ ख़त्म किया जा रहा है। आत्मिक  शांति,प्राकृतिक, वनस्पतियाँ ,स्वाभाविक  स्वछता, संवेदनशीलता ,सहनशीलता । और प्रेम। 
और यह सब ख़त्म  होने दिया जा रहा है,
मैं, आप और वे। सब इसके जिम्मेदार हैं।
क्योंकि हमारे दायित्वों के दायरे ख़त्म हो गए हैं।

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...