मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

शब्दों की माला

खेतों से गायब होने लगे हैं सरसों के बसंती फूल।
लेकिन जंगलों में मेहल, कनेर ,बुरांश ,पीहुली और भी कई तरह के फूल खिले हुए हैं । जंगलों में इस तैयारीको देख कर लगता है कोई परी इस धरती पर उतरने वाली है ।
या मेरी प्रेमिका ने यह सब सजा कर रखा है ।
बहर हाल यह कुछ भी हो , मैं तो मंत्र मुग्ध हो गया हूँ ।


शब्दों की माला गूँथ रहा हूँ । उसी के लिए
जिसने मेरे लिए जंगल सजाया ।
मुझे स्वप्न दिए । मुझे रंग दिए और प्रेम दिया।
जिसका कोई ओर न छोर
फूलों में रंग और सुगंध की तरह ही है जो मेरे भीतर ।

रविवार, 6 फ़रवरी 2011

महफ़िल

बहुत दिनों से शब्दों की महफ़िल में किसी का इंतज़ार था
या कि शब्दों का ही इंतज़ार था ।
किसी भी बहाने से नहीं आ रहे हैं शब्द। न फूलों के बहाने से , न प्रेमिकाओं के बहाने से , न भूख के बहाने से , न अत्याचार के बहाने से ।
महफ़िल सजी हुए है । एक तनहाई छाई हुई है । शब्द कहीं नहीं हैं ।
यह ख़ामोशी मेरे भीतर एक ताना बना बुन रही है ।
एक कथा या कविता ।

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

गावं

आज घर पर ही था । कार्यालय में बैठकर कुछ काम निबटाये । पिछले कई दिनों से लगातार गावों के भ्रमण पर था ।
गावों को बहुत करीब से देखने का मौका मिला ।
गावं और पहाड़ -घाटियाँ मुझे बचपन से ही बहुत लुभाते हैं ।
संस्था के गठन के साथ ही पहाड़ के दूर दराज की जिंदगी को बहुत करीब से देखा । लोग बहुत कठिन जीवन जीते हैं ।
कठिन श्रम ! लेकिन कठिन श्रम के बाद भी आर्थिक रूप से काफी पीछे हैं । शिक्षा और जागरूकता का स्तर अभी बहुत पीछे है। आश्चर्य कि स्कूलों में लगभग सभी अध्यापक स्थानीय होते हैं। यानि सभी शिक्षक स्थानीय होने के नाते जिम्मेदार भी होने चाहिए । लेकिन ऐसा नहीं है। शिक्षा तो जैसे इन स्कूलों पर आकर थम जाती है । छात्रों का विकास यहीं से अवरुद्ध होना शुरू हो जाता है । एक गावं का परिचय वहां के बच्चे दे देते हैं । आप उनसे कुछ बोलो मत, कुछ पूछो मत. बस उनकी गतिविधियाँ देखते रहो ।
फिर भी पहाड़ के लोग बुद्धिमान , एकांत ,और शांत प्रिय लोग होते हैं ।

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...