रविवार, 27 जुलाई 2025

 विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के  साथ -साथ एक छोटी - सी झलक भारत और पाकिस्तान की भी देखने को मिली इसके साथ ही कम्बोडिया थाईलैंड   और भी कई देश युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं. हर ओर  भयंकर विनाश का तांडव देखने को मिल रहा है।  शांति के लिए बोलने वालों की आवाज हवा में घुल कर  लुप्त हो जा रही है. विनाशक हथियारों , परमाणु  अस्त्रों के दम्भ में कोई देश किसी की सुनाने को तैयार नहीं है. राष्ट्रों को युद्धों की आग में झोंकने वाले तानाशाह, आतंकवाद के पोषक राष्ट्रों के क्रूर और निर्मम शासक अज्ञात जगहों पर  अपने बंकरों में छुपे मौज कर सिर्फ बमबारी के आदेश दे रहे हैं. मरने वालों का कोई आंकड़ा नहीं है।  भूख ,विस्थापन ,भय यह सब आम नागरिकों के लिए दैनिक जीवन का एक हिस्सा बन चुका है. निर्दोष जनता और निर्दोष सैनिकों  को विनाशक हथियारों की आग में झोंका जा रहा है.  और यह सब तानाशाहों के सत्ता की हवस के सिवाय कुछ नहीं है.     

विश्व के सभी जागरूक नागरिक प्रकृति, समस्त प्राणी ,पर्यावरण एवं  मानवता के पक्ष में युद्धों के विरुद्ध अपनी आवाज तेज करें।  युद्धों का विरोध करें। 

सोमवार, 24 मार्च 2025

मूचा विश्व युद्धों के चक्रव्यूह से निकल नहीं पा  रहा है।  दुनियां के शांतिप्रिय नेताओं के सारे प्रयास निष्फल होते दिख रहे हैं. अंधाधुंध बमबारी झेलना लोगों की दिनचर्या बन गई है।  कब कौन कहाँ बम का शिकार हो जाय कोई नहीं जानता।  सब एक दूसरे से विदा लिए हुए हैं, जीवन के प्रति संवेदनाएं, भावनाएं लुप्त हो गई हैं.. यह  त्रासदी हृदय विदारक है।  लोग हैं जो अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहें। कब कौन कहाँ अचानक धमाके के साथ ही चीथड़ों में बदल जाय कुछ कहा नहीं जा सकता। 
तानाशाहों को अपनी सेनाओं और संहारक अस्त्र शस्त्रों , मिसाइलों  बमवर्षकों पर भरोसा है। कि सेनाएं सब कुछ समाप्त कर सकती हैं।  युद्ध एक विनाशकारी धुन है. 

युद्ध  और आतंकवाद से दुनियां के आम नागरिक भयातुर हैं, 

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025





अद्भुद रंग लेकर आया है बसन्त। खेतों ने सरसों के बसंती रंग दे दिये हैं  और जंगलों ने कई प्रकार के फूलों के रंग।  महल के पेड़ धवल सुमनों से लदे  हुए हैं.  छोटी छोटी  बनस्पतियाँ अपने सम्मोहक रंग बिरंगे /सुनहरे  के परिधान पहनकर आकर्षित करते  हैं। आजकल सायंकालीन और प्रातः भ्रमण का  अनूठा आनंद है. मन को सुखद अनुभूति होती है।  कुछ पल के लिए आदमी सारे दुःख , तनाव भूल जाता है।  लगता है  कि इस दुनियां में प्रकृति और इसके सौंदर्य के अतिरिक्त कुछ भी नहीं  है. लौटते हुए एक सुखद ताजगी की अनुभूति होती है. 
कुछ पलों के लिए हम प्रकृति का हिस्सा होते हैं. प्रकृति का एक - एक पौंधा चाहता है कि  हम उनसे बातें करें. उनके रंगों की प्रशंसा  करें. 
दुनियां के तानाशाह प्रकृति से बेखबर युद्धों में व्यस्त हैं. सृजन के विपरीत युद्ध और विनाश उनकी प्राथमिकताएं हैं. और विनाशकारी युद्धों का यह दौर थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। आम आदमी के जीवन का मूल्य तानाशाहों की दृष्टि में  कोई अर्थ नहीं रखता है।  आम आदमी शांति चाहता है।   









 

शनिवार, 2 नवंबर 2024

 दीपावली की आप सभी पाठक मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं






 

इस पावन पर्व पर आप सुख, समृद्धि, धन धान्य, वैभव, यश से परिपूर्ण हों। विश्व का कल्याण हो, विश्व में शान्ति हो । 

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2024

 ऋतु  एक सुहावनी करवट ले रही है।  बरसात के बाद आसमान बिल्कुल प्रदुषण रहित ,साफ़- स्वच्छ होने के  कारण सूर्य की किरणें गर्म लोहे की छड़ की तरह तेज और बदन को जला देने वाली पड़  रही हैं. दिन छोटे होने लगे हैं. 

उत्तराखंड के पहाड़ों के गावों में  खेती का काम आरम्भ हो गया है। यानि आश्विन मास लग गया है।    ग्रामीण आजकल  इतने व्यस्त हैं. कि  बुखार और छोटी- मोटी बीमारियों की चिकित्सा आदि के लिए चिकित्सक के पास जाने का भी समय नहीं, वो तो खेत से घर और घर से खेत आने जाने में  ही ठीक हो जाता है। खाने के लिए घर आने का भी समय नहीं होता है घर का एक सदस्य खाना बनाकर उनके लिए खेतों में ले  जाता है।  या सुबह  घर से खाना  बनाकर अपने साथ ले जाते हैं। किसान होना कोई आसान काम नहीं है. हमें मात्र तैयार उपज  दिखती है।  

कुछ ही समय पश्चात् बाजार में नई फसल की  गहत, उड़द , मडुवा , झंगोरा, बाजरा, तिल, चौलाई, धान आदि आने लगेगा ।  फसल के साथ -साथ पूरे वर्ष भर के लिए पशुओं के लिए घास भी जमा करनी होती है।  और अगली बुआई के लिए खेत भी तैयार करने होते हैं।  

रोजगार के अभाव  में पहाड़ों से पलायन के कारण कृषि और पशु पालन भी प्रभावित हुआ है। बच्चे न होने के कारण कई गावों में स्कूल बंद होने की स्थिति में हैं. कई गावों में पहाड़ी शैली में बने आलीशान नक्काशीदार  घर खंडहर हो चुके हैं।  आधे से अधिक खेत बंजर हो चुके हैं। 

जो एक बार यहाँ से रोजगार के लिए पलायन कर गया वह फिर लौट कर गावं देखना भी नहीं चाहता ,या  रोजगार की आपाधापी में उसे गावं के बारे में सोचने का भी समय नहीं मिल पता हो।  


शनिवार, 4 मई 2024

 प्रणाम मित्रो ,

हमारे उत्तराखंड ( भारत ) में जंगलों में लगने वाली आग से वातावरण धुआं - धुआं हो रहा है।  बाहर प्रचंड गर्मी है।  यदि वनाग्नि नहीं लगी होती तो इतनी गर्मी नहीं पड़ती।  हर वर्ष लगाने वाली इस आग ने  न मालूम कितनी महत्वपूर्ण जड़ी बूटियों का  वंश समाप्त हो जाता है।  धरती हर वर्ष पेड़/ वनस्पतियां  उगाकर धरती को हरा भरा बनाने की कोशिश करती है। 

हर बरसात में वृक्षारोपण होता है और हर मई - जून में  सब स्वाहा हो जाता है।  

इस्राईल - हमास- ईरान , यूक्रेन - रूस , पिछले एक साल से भी अधिक समय से चल रहे हैं. धरती फाड़ी जा रही है. निर्दोष प्राणी मरे जा रहे हैं. हिंसा और विनाश का यह खेल बंद होने का नाम नहीं ले रहा है. सारे घातक और विनाशक  हथियारों का प्रयोग /प्रदर्शन हो रहा है, 

युद्धों की इस सनक / पागलपन में जीवन का कोई मूल्य नहीं, 

यूनाइटेड नेशंस की भूमिका अभी स्पष्ट नहीं दिख रही है कि युद्ध बनाये रखना चाहता है या रोकना।  युद्ध  लड़ाने  वालों की और है या पीड़ितों की और।  

नाटो देश अपने हथियार खपाने में लगे हैं।  

यह मानवीय हितों के प्रति  विश्व समुदाय का  स्तब्ध कर देने वाला व्यवहार  है।  

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...