सोमवार, 12 अप्रैल 2010

आखिर कब तक ?

आज दिन बहुत गर्म था । लगता था कि जून आ गया ।
मौसम का यह मिजाज लोगों को विचलित कर रहा है । शहर और गावं दोनों चिंचित हैं .वह किसान हो या नौकरीपेशा चिंता हर कहीं है । करोड़ों रुपये खर्च करके भी आप कुदरत के रस्ते नहीं रोक सकते .क्योंकि आपने ही करोड़ों खर्च करके कुदरत के साथ खिलवाड़ किया है । कुदरत नदी या हवा के प्रदुषण के लिए जिम्मेदार नहीं है । कुदरत जंगलों के सफाए के लिए भी जिम्मेदार नहीं है । यह सब अपने आप नहीं हो रहा है । यह किया जा रह़ा है ।
दर असल जबतक ये जिम्मेदारियां तय नहीं हो जाती तब तक सुधार की कोई भी कोशिश सफल नहीं होगी और हालात बदतर होते जायंगे । हवा और पानी के लिए घर -घर लड़ेंगे गली -मोहल्ले लड़ेंगे , गावं-गावं लड़ेंगे ,शहर -शहर लड़ेंगे ,देश- देश लड़ेंगे । लेकिन सुधार की तरफ कोई नहीं सोचेगा ।हर किसी के अपने स्वार्थ हैं . पूंजीपतियों के अपने स्वार्थ हैं .फैक्ट्रियों और नेताओं के अपने स्वार्थ हैं . आज पानी बोतलों में बिक रहा है कल हवा बिकेगी फिर धूप बिकेगी । ये स्थिति आने वाली है । वर्तमान हालात को देखते हुए यह स्थिति ज्यादा दूर नहीं दिखती । क्योंकि अपनी तरफ से कोई कुछ करता नहीं दिखाई नहीं दे रहा । सबकी नजर सरकारी वजट पर है । और वजट की बन्दर बाँट होती है । फिर सब कुछ वैसा का वैसा । हम सुधार की प्रक्रिया को अपने पूजा -पाठ या भोजन की तरह अनिवार्य क्यों नहीं बनाते ?

शनिवार, 3 अप्रैल 2010

कहानियां तरह-तरह की

हर रोज अपनी बात कहनी होती है . या कहूँ कि पल-पल को जोड़ कर एक कहनी बनानी होती है .जो बहुत रोचक हो । कहानी सिर्फ अपनी ही लगाने से नहीं बनती है । उसमें दूसरों को भी जोड़ना होता है या घसीटना होता है । मैं जिससे मिला और जो मुझसे मिला उसे भी । किसी फूल के पास जाकर कुछ पल उसके पास बैठना ,उसकी सुगंध में शामिल होना और उससे चुपचाप मन ही मन अपनी बात कहना भी प्रकृति के साथ हमारे व्यवहार का एक हिस्सा है । जो हमारे दिन को सुखद बनाता है । हम कुछ देर उसके रंग और गंध से सम्मोहित हो जाते हैं .अपने तनावों से दूर हो जाते हैं । किसी को फूल भेंट करना हमें सुकून पहुंचाता है । एक चिड़िया का अपने चूजे के साथ बतियाना हमें ख़ुशी देता है । जबकि हम उनकी भाषा नहीं जानते हैं।
प्रकृति में चारों ओर हमारे मित्र फैले हुए हैं । कमी है तो उनके साथ दोस्ताना संवाद की । यही चीजें हमारी कहानी के जीवंत और रोचक पात्र हो सकते हैं । इनके और हमारे बीच के संवाद दूसरों के लिए महत्वपूर्ण हो सकते है । प्रकृति के साथ बात करती एक कहानी इस पूरी धरती को ख़ुशी दे सकती है । ख़ुशी किसी उपदेश में नहीं मिलती है किसी के कहने से नहीं मिलती । प्रकृति के साथ एक मधुर संवाद कुछ पल हमें अपने आप से संवाद की ओर ले जाता है जहां हमें किसी ख़ुशी की तलाश नहीं रह जाती । और बाहर निकलते ही हम फिर ख़ुशी तलाशते हैं ।अपने दिन में टुकड़ा-टुकड़ा घटनाएँ जोड़ कर एक कहानी बनाते हैं ।ख़ुशी की कहानी । दुःख की कहानी ।सच/झूठ और भी तमाम तरह की कहानियां ।

  विश्व में युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहे।  रूस - यूक्रेन/नाटो  , हमास -  इज़राइल , हिज़्बुल्ला - इज़राईल, ईरान -इज़राईल  के सर्वनाशी युद्धों के...