शनिवार, 4 मई 2024

 प्रणाम मित्रो ,

हमारे उत्तराखंड ( भारत ) में जंगलों में लगने वाली आग से वातावरण धुआं - धुआं हो रहा है।  बाहर प्रचंड गर्मी है।  यदि वनाग्नि नहीं लगी होती तो इतनी गर्मी नहीं पड़ती।  हर वर्ष लगाने वाली इस आग ने  न मालूम कितनी महत्वपूर्ण जड़ी बूटियों का  वंश समाप्त हो जाता है।  धरती हर वर्ष पेड़/ वनस्पतियां  उगाकर धरती को हरा भरा बनाने की कोशिश करती है। 

हर बरसात में वृक्षारोपण होता है और हर मई - जून में  सब स्वाहा हो जाता है।  

इस्राईल - हमास- ईरान , यूक्रेन - रूस , पिछले एक साल से भी अधिक समय से चल रहे हैं. धरती फाड़ी जा रही है. निर्दोष प्राणी मरे जा रहे हैं. हिंसा और विनाश का यह खेल बंद होने का नाम नहीं ले रहा है. सारे घातक और विनाशक  हथियारों का प्रयोग /प्रदर्शन हो रहा है, 

युद्धों की इस सनक / पागलपन में जीवन का कोई मूल्य नहीं, 

यूनाइटेड नेशंस की भूमिका अभी स्पष्ट नहीं दिख रही है कि युद्ध बनाये रखना चाहता है या रोकना।  युद्ध  लड़ाने  वालों की और है या पीड़ितों की और।  

नाटो देश अपने हथियार खपाने में लगे हैं।  

यह मानवीय हितों के प्रति  विश्व समुदाय का  स्तब्ध कर देने वाला व्यवहार  है।  

गुरुवार, 18 जनवरी 2024

 अँधेरे को भी अस्त होना होता है।  बिलकुल दिन की मानिंद। उसकी अवधि और महत्त्व दोनों हैं।  महाभारत कालीन युद्धों में भी  रात को  युद्ध विराम होता था।  आज तो भयंकर विनाशकारी युद्ध , बमबारी रात  को ही हो रही हैं, 

रात एक विराम  का नाम भी है जो आपके दुखों, तनावों, द्वंद्वों को अपनी ममता की छाँव देती है।  सबकुछ भूलकर सो जाने को कहती  है। आपकी पीड़ाएँ रात बाँट लेती है. एक सुखद सुबह के आगमन का आश्वासन देती है। 

इसलिए दिनभर की थकान , ऊब निराशा, को ऊर्जावान दूसरे दिन में बदलने ,  जीवन में एक नए प्रकाश आगमन के लिए  रात का स्वागत करें. 

शांति के लिए रात  का भी एक उत्सव की तरह स्वागत करें। 

आपका जीवन सुखमय और लम्बा होगा। 

दिन को भूल  जाएँ क्योँकि वह लौटकर आनेवाला नहीं है।  हाँ दिन की भूलें जरूर याद रखें।  रात के अँधेरे को उन भूलों को भी मिटाने का अवसर दें। दिनभर के सारे द्वन्द्व रात को सौंप दें। 

भोर एक नए समाधान के साथ जरूर आएगी।  

स्वप्न देखें  . अचेतन भी संकेत देता है. 

मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

 भारी बमबारी के बीच सांता इस्राइल- ग़ज़ा पहुंचा या नहीं, यूक्रेन-  रसिया पहुंचा या नहीं। क्योँकि वहां सांता के जाने का समाचार नहीं देखा।  कोई शांति लिए नोबल पुरस्कार विजेता बम बर्षकों के नीचे  खड़े होकर चिल्लाया नहीं कि  बंद करो ये विनाश। ऐसा भी कोई समाचार नहीं देखा।  किसी को  कंधे में क्रॉस रख कर वहां  शांति की अपील करते नहीं देखा. वहां किसी इस्लामिक पैगम्बर  के अनुयायी को शांति के लिए मार्च निकालते नहीं देखा। सारे चर्च और मस्जिदें मौन क्योँ हैं. 

एक विचित्र द्विविधा में दिखते हैं दोनों।  आतंक का साथ दें  या युद्ध का। 

युद्धों के बीच मात्र तानाशाहों की क्रूरता , आतंक , भय ,मृत्यु और विनाश को अपनी भाषा बोलते देख रहा हूँ। 

यहाँ पर आकर दिखाई देता है कि नोबल पुरस्कार किस को और क्योँ दे दिऐ जाते हैं। 

आतंक और युद्ध किसकी भाषा है और शांति का नोबल किस प्रकार के लोगों की भाषा बोलने वालों को दिया  जाता है. 

गुरुवार, 7 दिसंबर 2023

 सुबह  - सुबह  पक्षियोँ के कलरव से नींद  खुली।  चाय पीकर बाहर निकला तो देखा कि खेतों ने घने  कुहरे की चादर  ओढ़ी है और ठण्ड हरियाली के पहरे में खड़ी  है।  बाहर निकलने का साहस नहीं  हो रहा था लेकिन समय के साथ  चलने के लिए कमरे से बाहर  निकला।  

धूप के निकलने के साथ ही कुहरा हवा में घुलने लगा और ठण्ड भी किरणों के रथ में बैठकर चली गई।   हरियाली निश्चिंत होकर अपनी आभा बिखेरने लगी घाटी के दोनों और की पहाड़ियां आकर खड़ी  हो गई।  

शीत ऋतु  में हर वर्ष कई प्रकार के नए - नए अतिथि पक्षी घर के आस पास आकर चहकने लगते हैं या कहूँ  कि मिलने आते हैं. 

उनका आना अच्छा लगता है।  मेरे मित्रों में वे भी प्रिय मित्र  हैं. 


गुरुवार, 23 नवंबर 2023

गुरुवार, 16 नवंबर 2023

समूचे विश्व में चल रहे युद्धों के कारण महाशक्तियों के अस्त्र शस्त्रों  के भण्डार लगभग खाली होने को हैं. और उन्नत हथियार बनाने को आतुर हैं और उनकी  संहारक क्षमता के  परीक्षण  भी हो रहे हैं. अनगनित बम गिराए जा रहे हैं. परमाणु युद्धों के बादल मंडरा कर लौट जा  रहे हैं. प्राणियों और सभ्यताओं के अस्तित्व संकट में हैं. पर्यावरण की तो बात ही व्यर्थ है.  महाशक्तियां ह्र्दय हीन/ संवेदनहीन हो रही  हैं. परमाणु युद्ध की संभावनाएं खोजी जा रही हैं, 


सारी  दुनियां के बुद्धिजीवी नाम के जीव मौन  हैं.  असहाय है. या अपनी जीविका के स्वार्थ में   व्यापक संहार की ओर से ऑंखें मूंदें हैं।  या युद्धों को महिमामण्डित कर रहे हैं. 
विश्व समुदाय बिल्कुल महाभारत  की पुनरावृत्ति की ओर बढ़ रहा है।   

महाविनाश की ओर  बढ़ती इस धरती पर हम इस धरती पर क्या बचाने  के लिए संघर्ष करें। 

 प्रणाम मित्रो , हमारे उत्तराखंड ( भारत ) में जंगलों में लगने वाली आग से वातावरण धुआं - धुआं हो रहा है।  बाहर प्रचंड गर्मी है।  यदि वनाग्नि ...